बैक-ग्राउण्ड में वर्ल्ड-कप के तमाशे की ज्वाला की धधक थी। ‘कौन जीता, कौन हारा’ से कतई परे। भला हो, आक्टोपस बाबा का! इसी ‘परे’ होने में अ-लौकिक साम्प्रदायिक सद्भाव की अनपेक्षित गल-बहियाँ हिलोरें ले रही थीं। Continue reading
July 2010 archive
Jul 18 2010
बलिहारी इस ईमान (दारी) की!
घुटे-छँटे राज-नैतिक श्रेष्ठि अपनी बे-नकाबी के आसन्न गहरे संकट को, काम के अतिरेक से उपजी रोजमर्रा की भुला दी जाने वाली, छोटी-मोटी ना-कामयाबियों की तरह जनता के सामने रखने की बिसात बिछाने जुट गये हैं। Continue reading
Jul 11 2010
आखिर मुग़ालते ही तो होते हैं मुग़ालते!
सच तो केवल यह है कि मुग़ालते सम-दर्शी और सम-भावी होते हैं। किसी एक आदम-जात, गुट या पार्टी की बपौती नहीं है मुग़ालतों पर। यह तो खुली खेती है। मुफ़्त की जमीन पर और बिना धेला खरचा किये की जा सकने वाली। Continue reading
Jul 04 2010
झण्डे और डण्डे का उल्टा-पुल्टा
देश में झण्डे का परिचय पहली क्लास से ही शुरू होता है। अब तो, पास होना भी जरूरी नहीं रह गया है। रहता था तब भी कौन सा जरूरी था कि गरीब का बच्चा स्कूल जाये। खुद हिसाब लगाकर देख लीजिए। झण्डे का सही-साट लगाना कुल पापुलेशन में से कितनों को आता होगा? Continue reading