असली पॉज़िटिव टिप है कि यह समझा जाये कि कैसे माइनस और माइनस को मिला देने से सब कुछ प्लस में बदल जाता है? इतना समझा नहीं कि पूरा जहां परफ़ेक्ट पॉज़िटिव क्लाउड की छत्र-छाया में आ जायेगा। Continue reading
September 2010 archive
Sep 19 2010
एक प्याली चाय का वज़न
मियाँ खबरों की किस सदी में जीते हो? मैं तो प्रणव दा की उस एक प्याली चाय का असली ‘वज़न’ पूछ रहा था जिसे पिला कर उन्होंने, क्या बीजेपी और क्या वाम-पंथी, सभी को एक साथ साध लिया था! Continue reading
Sep 15 2010
धर्म-निरपेक्षता का आडम्बर
धर्म-निरपेक्षता का सोच अप्राकृतिक है क्योंकि यह अपने-अपने वैयक्तिक स्वार्थों को फलीभूत करने के सोच से उपजा आडम्बर है। दुर्भाग्य से, हम ऐसे गुरुजनों से वञ्चित होते जा रहे हैं जो समाज, समुदाय और सम्प्रदाय में भेद करने लायक शिक्षा दे सकें। Continue reading
Sep 12 2010
सूट करती हैं, सूट नहीं करती हैं
सारा दोष पोथी-पण्डितों का था। कन्फ़्यूज़्ड करके रख दिया था भगवान को। जन्माष्टमी एक दिन पहले हो या एक दिन बाद! बैठा दी उसने अपनी पंचायत। पहले तय किया जाये कि मेरा हैप्पी बर्थ डे आखिर कब है? Continue reading
Sep 05 2010
कुछ-कुछ पच नहीं रहीं ये बातें
बात कुछ हजम नहीं हो रही है। कोई संकेत कर रहा है कि केन्द्रीय मुख्य सूचना आयुक्त की रिटायर-मेण्ट की तारीख बिल्कुल नजदीक आ गयी है। तो, कोई समझाने की कोशिश कर रहा है कि इसे महज फ़्रस्टेशन मान कर भूल जाइये। Continue reading