‘मोह-भंग होने से पहले ही लोक-तन्त्र की कमियों को दूर करना होगा वरना जनता तख्ता पलट देगी।’ यह सन्देश था मुख्य चुनाव आयुक्त क़ुरैशी का जो उन्होंने लखनऊ में कानून मन्त्रालय की कोर कमेटी के सम्मेलन से दिया।
ठण्डे-सन्तुलित दिमाग से विचारें तो अपने आप में बड़ा खतरनाक है इसका निहितार्थ। यथार्थ लोक-तन्त्र की स्थापना की घोर बेचैनी में की गयी किसी गम्भीर जन-कोशिश को इतने नकारात्मक भाव में रखना, प्रकारान्तर से, चौ-तरफा भ्रष्ट और निरंकुश होते राजनैतिक-प्रशासनिक-विधाई तन्त्र के हाथ से सत्ता-सुख के छिन जाने के भय को शब्द देने जैसा ही कलुषित कृत्य है। खास तौर से तब जब यह ऐसे संविधान-प्रतिष्ठित संस्था-प्रमुख की ओर से रखा गया हो जिसके अपने जिम्मे में लोक-तन्त्र की आधार-भूत कुञ्जी की देख-भाल की जिम्मेदारी हो।
ठीक ही तो कहा गया है, ‘पर उपदेश, कुशल बहुतेरे!’
(३१ जनवरी २०११)