नूरा कुश्ती देख रहे आम आदमी का मुग़ालता है कि करुणानिधि कांग्रेसी झाँसे के शिकार हो रहे हैं, कांग्रेस डीएमके को ठेंगा दिखाएगी। जबकि, हो सकता है कि झुन-झुना कांग्रेस ने नहीं डीएमके ने थमाया हो। Continue reading
April 2011 archive
Apr 20 2011
लोकपाल पर बवाल : निरर्थकता पर सार्थक सवाल
मूल सवाल पुराना है। और इस नाते, बवाल भी उतना ही पुराना है। केवल परिस्थितियाँ बदल गयी हैं। नैतिक निष्ठा और आधारभूत ईमानदारी हर हालत में पा लेने को लेकर इतने लोग सड़क पर आ गये कि लगा जैसे पूरा का पूरा देश ही सैलाब बनकर सड़क पर उतर आया हो। परिणाम भी सामने है। लोक-तन्त्र के भारतीय इतिहास में राजनेता और प्रशासन इससे पहले इतने दबाव में कभी नहीं आये जितने कि वे आज आ चुके हैं। Continue reading
Apr 18 2011
विवादों के घेरे में भारत-रत्न
कुल दो अवसर ऐसे भी आये हैं जब इस सम्मान के लिए नामित किये जाने के बाद सम्मानित किये जाने के निश्चय को वापिस लिया गया। Continue reading
Apr 17 2011
चोर की दाढ़ी का तिनका
अपने कहे से मुकरने को ‘बन्दर-कुलाटी’ कहते हैं। कहते तो यह भी हैं कि जब पट्ठा इतना माहिर हो तो उस्ताद का क्या कहना? लेकिन, वह उस्ताद है यह प्रूव करने के लिए फ्रण्ट पर तो उस्ताद को ही आना होगा ना? Continue reading
Apr 10 2011
मेरे देश का यारो, क्या कहना!
आप सोच रहे होंगे कि बैण्ड-बाजे की धुन से कहाँ पॉलिटिक्स के ओछेपन में घसीट लाया आपको। पर, धीरज से सुनिये। मैं एक खास गाने के धुन की बात कर रहा था ना? तो वह गाना है, ‘मेरे देश का यारो, क्या कहना!’ Continue reading
Apr 03 2011
खेल-खेल में डूबा इण्डिया
अब भी समय है, सम्हल जाओ। कहीं ऐसा न हो कि झाँसों में पगी जो ‘माले-मुफ़्त’ स्लीपिंग पिल बाँटी जा रही है उसकी ओवर डोज़ तुम्हें करप्शन के गर्त में इतना डुबा दे कि फिर चाह कर भी प्राण-वायु पा न सको। Continue reading