भला हो कलमाडी का, अपने ही वकील की वकालती दलीलों को ठोकर मार घोषणा कर दी कि डिमेन्शिया-विमेन्शिया बकवास है। पूरी याददाश्त चाक चौबन्द है। बस, भाई साहिब सुबह की जॉगिंग का लुत्फ़ लूटने घर से निकल आये। Continue reading
July 2011 archive
Jul 26 2011
मीडिया और बन्धुआ…?
किसी भी टिप्पणी को करने से पहले मीडिया का दायित्व हो जाता है कि वह बन्धुआ से जुड़ी विवशता को ठीक-ठीक समझ ले। इसके लिए मीडिया को नीयत और नियति के अन्तर की बेहद सरल बारीकी को ध्यान में रखना होगा। Continue reading
Jul 24 2011
आगे-आगे देखिये होता है क्या?
अदालत ने काले धन पर एसआईटी क्या बना दी, तूफान बरपा हो गया। इसे पॉलिटिकल कम्पल्शन मानकर अनदेखा करिये। नहीं करेंगे तो पॉलिटीशियन्स का तो बाल भी बाँका नहीं होगा, आपकी अपनी मेमोरी जरूर कचरे से भर जायेगी। Continue reading
Jul 20 2011
लोकपाल पर दो टूक : सार्थकता ही सर्वोपरि
लोकपाल के घेरे में लिये जाने की भँवर में झूल रहे सांसद् को तो यह अधिकार है कि वह देश के राष्ट्रपति को पद-च्युत करने तक का निर्णय ले सके लेकिन इस प्रावधान पर अन्ना और सरकार में मौन सहमति बन चुकी है कि लोकपाल उसी राष्ट्रपति के दायित्व-स्खलन की समीक्षा भी नहीं करेगा। इस अन्तर्विरोध की दो टूक सफाई सरकार को नहीं, हजारे को देनी है। Continue reading
Jul 17 2011
नेता तुसी बड़े पक्के हो जी!
खबर है कि मनमोहन के अत्यन्त विश्वस्त संजय बारू ने पब्लिक-ली कहा है कि मनमोहन के पास कोई राजनैतिक ताकत नहीं है। गोया, नेता वही है जो सटोरिये के से अन्दाज में आखिरी गेंद वाला विनिंग छ्क्का जड़वा दे। Continue reading
Jul 10 2011
नेता, अभिनेता और मीडिया
‘नेता, अभि-नेता और मीडिया’ डेमोक्रेसी की ग़जब तिकड़ी है। मेरे जानिब, हिन्दुस्तान ही ऐसा इकलौता देश है जिसमें मीडिया ने बाकी दोनों के बीच ग़जब की बिचौलिया-गिरी की है। इन्हें बनाने में भी और मिटाने में भी। Continue reading
Jul 03 2011
स्पॉण्डिलाइटिस का दर्द!
कोई एस्ट्रॉलॉजर आपकी कुण्डली निकाले तो बता देगा कि देश के पीएम की कुर्सी एक न एक दिन आपकी मोहताज होगी। ऐसी जन-सेवक आत्मा को स्पॉण्डिलाइटिस कहाँ से होगी? इस बीमारी के लिए रीढ़ की हड्डी का होना भी तो जरूरी है! Continue reading