अपने जीवित रहने के अधिकार की माँग करते समय दूसरे के भी जीवित रहने के अधिकार को स्वीकार करना ही यथार्थ रचनात्मक भूमिका है। ऐसे विकेन्द्रीकृत समाज की कल्पना के कारण, जिसमें सभी की अपनी अलग पहचान तो हो परन्तु सभी एक हों, गांधी-विचार बहुधा दोनों खेमों की तीखी आलोचना के शिकार होते हैं। Continue reading
February 2013 archive
Feb 23 2013
कानून नागरिक के लिए है, नागरिक कानून के लिए नहीं
एक सहज सवाल है कि नजरें इतनी नीची करके कि वे बन्द सी ही बनी रहें, आखिर कब तक जिया जा सकेगा? सच है कि नागरिक को कानून के प्रति जिम्मेदार बनना पड़ेगा पर कानून की भी अपनी जिम्मेदारियाँ होती हैं कि नहीं? Continue reading