पाँच राज्यों की विधान सभाओं के ताजे चुनावी मौसम में सवालों और प्रति सवालों का उठना स्वाभाविक बात है। इन ‘तहलकों’ का खबरें बनना भी स्वाभाविक ही है। लेकिन खबरों की तलाश करने और फिर उनकी जड़ें खोद कर दिखलाने का दावा करने वाले प्रतिष्ठित सवालियों के स्वयं भी सवालों से घिर जाने की बातें बिरली ही होती हैं। Continue reading
November 2013 archive
Nov 17 2013
बगर ही गया राष्ट्र के सम्मान का फ़ालूदा
सचिन के पास ऐसी पात्रता नहीं कभी नहीं रही कि उसे भारत-रत्न के मान से सम्मानित किया जा सके। इस सचाई के बाद भी उसे ‘भारत-रत्न’ घोषित कर दिया गया। गुलामी से मुक्ति और फिर आरम्भिक स्थिरता पाने के बाद भारत इससे अधिक शर्म-सार इक्का-दुक्का बार ही हुआ है। Continue reading
Nov 13 2013
दोनों हाथ मजा
रंजीत सिन्हा द्वारा ‘यौन-दुष्कर्म का मजा लूटने’ के खुल कर किये गये प्रस्ताव के बाद उठी बहस में सुलगता हुआ यह यक्ष-प्रश्न सुलझाया ही जाना चाहिए कि जाँच-एजेन्सियों द्वारा दी जाने वाली क्लीन-चिट्स में कहीं जाँच एजेन्सियों में, पहले से चले आ रहे, किसी ‘सिन्हा-दर्शन’ का ही भर-पूर लाभ तो नहीं उठाया जाता है? Continue reading