संकेत हैं कि आयोग की कन-पटी पर ‘जूँ के रेंगने’ जैसा कुछ न कुछ प्रभाव तो पड़ा ही है। यों आयोग ने, केवल दिखावे के लिए ही, एक तरह से मुखौटा लगाया है। लेकिन, किसी सुन-बहरे को इसके लिए विवश कर पाने को कि वह स्वीकारे कि बहरा-पन उसका कोरा दिखावा रहा क्या कोई नगण्य उपलब्धि है? Continue reading
August 2015 archive
Aug 09 2015
राज्य सूचना आयोग के मुख्य आयुक्त के नाम खुला पत्र
आयोग के गठन की निरर्थकता और दुर्दशा की द्विविधा का यथार्थ-परक निवारण करने के लिए यह खुला पत्र लिखने विवश हुआ हूँ ताकि, आयोग के मुखिया को यह सूचित हो कि उसके अपने ही कार्यालय में आयोग के साथ ही अधिनियम की भी सच्ची उपयोगिता को प्रमाणित करने की घड़ी एक बार फिर से आ खड़ी हुई है। Continue reading
Aug 01 2015
राज्य सूचना आयोग : क्या स्वयं आयोग के भीतर है अधिनियम की सही समझ?
अधिनियम के बन्धन-कारी पालन की दुर्भाग्य-जनक उपेक्षा के लिए क्या केवल विभिन्न सरकारी विभाग ही जिम्मेदार रहे हैं? क्या म० प्र० राज्य सूचना आयोग की अपनी भूमिका इस जिम्मेदारी से कतई मुक्त रही है? सम्भवत:, ऐसी ही किसी सामाजिक पीड़ा के मूल्यांकन के बाद इस पुरातन उक्ति ने जन्म लिया था कि ‘पर उपदेश, कुशल बहुतेरे!’ Continue reading