बहस में कूदे तमाम राजनैतिक दलों और उनके धुरन्धरों को समझना होगा कि आईपीसी की धारा २२८-ए यौन-प्रताड़ित को उसके द्वारा भोगी जा चुकी प्रताड़ना से आगे की सामाजिक प्रताड़ना से संरक्षित करने के लिए जोड़ी गयी थी, उसे अपने नैसर्गिक अधिकारों से वंचित करने के लिए नहीं। Continue reading
Category: बहस
Nov 13 2013
दोनों हाथ मजा
रंजीत सिन्हा द्वारा ‘यौन-दुष्कर्म का मजा लूटने’ के खुल कर किये गये प्रस्ताव के बाद उठी बहस में सुलगता हुआ यह यक्ष-प्रश्न सुलझाया ही जाना चाहिए कि जाँच-एजेन्सियों द्वारा दी जाने वाली क्लीन-चिट्स में कहीं जाँच एजेन्सियों में, पहले से चले आ रहे, किसी ‘सिन्हा-दर्शन’ का ही भर-पूर लाभ तो नहीं उठाया जाता है? Continue reading
Mar 23 2013
ठेंगे से न्याय-पालिका!
जबकि न्यायिक विचारण और निर्णय के सारे अधिकार केवल न्याय-पालिका के सम्प्रभु विशेषाधिकार हैं, क्या सच में ही भारतीय न्याय-पालिका के सम्मान की रक्षा हुई है? या फिर, हमारी सबसे बड़ी अदालत को, अब तक के उसके इतिहास के, सबसे गम्भीर अपमान की दहलीज दिखा दी गयी है? Continue reading