ओबामा भले ही बड़-बड़ाते फिरें कि इण्डियन्स बदले जमाने के कम्पल्शन्स को समझ नहीं रहे हैं लेकिन मैंने नोटिस किया है कि हमारे घाघ पॉलिटीशियन्स केवल नाम के ही नहीं बल्कि चरित तक के पक्के घाघ हो गये हैं। Continue reading
Category: फ़ोर्थ पॉकेट
Jul 15 2012
उल्टे बाँस बरेली को!
उकसाये जाने पर भी मैं यह कहने को तैयार नहीं कि घबरा देने वाले ऐसे माहौल में ‘लोक-तन्त्र का गला घोंट देने’ का खुला आरोप झेल चुका शख़्स उतनी ही ताकत एक बार फिर से कब्जा सकता है। मैं तो बस यह सोच कर दु:खी हूँ कि बाँस के कन्साइन्मेण्ट्स उल्टे बरेली लौटने लगे हैं। Continue reading
Jul 01 2012
औक़ात है तो दिखाओ!
दूसरे को अपनी औक़ात साबित करने की चुनौती देना एक तरह की ‘औक़ात रि-गेनिंग’ टेक्टिस ही है। अपने दिग्गी भाई को भूले नहीं होंगे। कभी बड़े औकात-दार हुआ करते थे। आज-कल टीम अन्ना को धूर देते फिर रहे हैं कि औक़ात हो तो शिवराज के मुँह पर कालिख पोत कर दिखाओ! Continue reading
Jun 24 2012
गयी भैंस पानी में!
भरोसे की भैंस के पड़ा जनने वाले बुन्देली उलाहने में हाथ पर हाथ धरे बैठने के नुकसानों की पॉसिबिलिटी को अण्डर-लाइन करके दिखलाने से ज्यादा कुछ नहीं है। लेकिन, भैंस के पानी में जाने का भोपाली ताना पूरी की पूरी पूँजी के ही हाथ से फिसल जाने के दर्द को बयांन करता है। Continue reading
Jun 17 2012
कौन किसके आसरे?
पहले डेवलप्ड कण्ट्रीज़ ने हमें सिखाया कि बड़ों के जूठन के आसरे जीने के क्या फ़ायदे हैं? अब ’दार जी गुरु-दक्षिणा चुका रहे हैं। एश्योर कर रहे हैं कि देश-हित जाये भाड़ में, इतनी दुर्गत के बाद भी हम ‘आसरा-संस्कृति’ का दामन थामे रहेंगे। Continue reading
Jun 10 2012
गली-गली में शोर है
भैरयाना बोले तो, पॉलिटिकली बैंक-करप्ट होना। जैसे, बीजेपी एलाइन्स से बाहर जमीन की तलाश में जुटी जेडीयू। इसके बिहारी मन्त्री गिरिराज सिंह एक खास जाति के वोट-बैंक को जुगाड़ने के लिए कह बैठे कि रणवीर सेना का सरगना ब्रह्मेश्वर मुखिया जीवन के अन्तिम पल तक ‘गांधी-वादी’ रहा! Continue reading
Jun 03 2012
सिखाया पूत : दरबार चढ़े भी, नहीं भी!
सचिन ने पहले अपने नॉमिनेशन को प्रपोज़ करने और फ़ाइनल करने वालों की अक़्ल का तमाशा बना दिया। फिर, आईपीएल में खेलने की खातिर, अपने देश की टीम में शामिल होने से मना करने वाले पीटरसन की आलोचना कर साबित किया कि एक न एक सिखाया पूत, आखिर-कार, दरबार चढ़ ही जाता है। Continue reading
May 27 2012
अबकी बारी, उसकी बारी!
प्रेसीडेण्ट के इलेक्शन को ही लें। यह पक्का है कि यह छींका जुलाई में टूटने वाला है। और, जब छींके के टूटने की श्योरिटी हो तो उसमें अपना नाम ढूँढ़ने वालों की लम्बी सी कतार तो तैयार होगी ही होगी। सो, वह भी तैयार है जिसमें हर वैरायटी के पॉलिटिकल प्राणी शामिल हैं। कर्णी सिंह जैसे आउट-डेटेड भी! Continue reading