संकेत हैं कि आयोग की कन-पटी पर ‘जूँ के रेंगने’ जैसा कुछ न कुछ प्रभाव तो पड़ा ही है। यों आयोग ने, केवल दिखावे के लिए ही, एक तरह से मुखौटा लगाया है। लेकिन, किसी सुन-बहरे को इसके लिए विवश कर पाने को कि वह स्वीकारे कि बहरा-पन उसका कोरा दिखावा रहा क्या कोई नगण्य उपलब्धि है? Continue reading
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Aug 09 2015
राज्य सूचना आयोग के मुख्य आयुक्त के नाम खुला पत्र
आयोग के गठन की निरर्थकता और दुर्दशा की द्विविधा का यथार्थ-परक निवारण करने के लिए यह खुला पत्र लिखने विवश हुआ हूँ ताकि, आयोग के मुखिया को यह सूचित हो कि उसके अपने ही कार्यालय में आयोग के साथ ही अधिनियम की भी सच्ची उपयोगिता को प्रमाणित करने की घड़ी एक बार फिर से आ खड़ी हुई है। Continue reading
Jul 29 2015
सम्मान-प्रदर्शन या घोर अपमान?
दिवंगत् पूर्व राष्ट्रपति के पर्थिव शरीर के प्रति अपने सम्मान को प्रकट करने के लिए प्रधान मन्त्री मोदी विमान-तल समय से नहीं पहुँचे। और, सम्मान के उनके दिखावे की ऐसी इच्छा की पूर्ति के लिए इस महापुरुष के पर्थिव शरीर को, विमान से अपने उतारे जाने की, पर्याप्त प्रतीक्षा करनी पड़ी! Continue reading
Jul 25 2014
राष्ट्र-भाषा हिन्दी के प्रति मीडिया का दायित्व
पत्र-कारिता और मीडिया की सचाइयाँ परस्पर भिन्न हैं। यह भिन्नता इस व्यवहारिक सचाई से समझी जा सकती है कि ‘पत्र-कारिता’ की प्रतिष्ठा एक सामाजिक धर्म की रही है जबकि ‘मीडिया’ की आज की औसत पहचान पत्र-कारिता के सहारे व्यावसायिक हितों की पूर्ति करने वाले एक संस्थान के पर्याय की है। Continue reading
Oct 02 2013
सोनिया के खिलाफ़ लड़ेंगे वी के सिंह
जनरल सिंह ने निश्चय किया है कि चुनावी मैदान में वे सोनिया के खिलाफ़ मोदी का सहारा लेंगे। Continue reading
Jul 26 2011
मीडिया और बन्धुआ…?
किसी भी टिप्पणी को करने से पहले मीडिया का दायित्व हो जाता है कि वह बन्धुआ से जुड़ी विवशता को ठीक-ठीक समझ ले। इसके लिए मीडिया को नीयत और नियति के अन्तर की बेहद सरल बारीकी को ध्यान में रखना होगा। Continue reading
Mar 15 2011
थॉमस बरखास्त
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्णय पारित करने के ग्यारह दिनों बाद राष्ट्रपति द्वारा थॉमस की नियुक्ति को निरस्त करने का वारण्ट जारी हो गया।
विगत ३ मार्च को न्यायालय के निर्णय की घोषणा के बाद से ही केन्द्र सरकार से यह नैतिक अपेक्षा की जा रही थी कि वह थॉमस की बर्खास्तगी को अन्जाम देने के अपने दायित्व को बिना किसी विलम्ब के पूरा करे। लेकिन अपने ही आन्तरिक दबावों में घिरी यूपीए सरकार इससे हिचक रही थी।
उल्लेखनीय है कि इस सम्बन्ध में लिखे अपने पिछले आलेख में मैंने केन्द्र की इस हिचक पर तीखा संवैधानिक सवाल उठाया था। अन्तत: सोमवार को राष्ट्रपति ने थॉमस की नियुक्ति को निरस्त करने के वारण्ट पर अपने हस्ताक्षर कर ही दिये।
(१५ मार्च २०११)
Feb 21 2011
‘बे-रंग’ लौटा छोटा
कोई अनहोनी होनी नहीं थी सो नहीं हुई। सभी जानते थे। खुद ‘छोटा भाई’ भी। लेकिन वोट की राजनीति में इस ‘जानने’ का कोई अर्थ नहीं होता। मायने रखती है तो यह बात कि राज-नेता सचाई को झुठलाने में किस कदर सफल होता है?
इस सारी कवायद में म० प्र० का सीएम बुरी तरह फेल हुआ। पिछले दिनों मैंने बिल्कुल साफ शब्दों में लिखा था कि कैसे केवल कुर्सी से चिपके रहने के लोभ में इस शब्द-वीर ने उपवास का इरादा छोड़ा था? पार्टी को अन्धेरे में रखकर ‘बड़े भाई’ के सम्मान में घुटने टेके थे। दिल्ली में महज दिखावे की इज्जत-बचाऊ बात के लिए बैठे शिवराज के हाथ में ऐसा कुछ नहीं था जो उन्हें पीएम से अपनी बात मनवाने की ताकत देता। लचर सी दलीलों के पुलन्दे के साथ बैरंग लौट आये हैं।
(२१ फरवरी २०११)
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