आधी-अधूरी और अपुष्ट सूचनाएँ उपलब्ध करा खेसारी दाल की खेती को कानूनी मान्यता देने की खबर है। खबर के साथ सोचे-समझे कुतर्क फैलाये जा रहे हैं। खेसारी से जिनके व्यापारिक स्वार्थ जुड़े हैं उनके द्वारा भी, कुछ तथा-कथित कृषि-विज्ञानियों द्वारा भी और शासन-प्रशासन तन्त्र से जुड़े निहित स्वार्थी तत्वों द्वारा भी। Continue reading
Dec 30 2015
यथार्थ में भारत-वंशी हैं आज के अधिकांश यूरोपीय
बीती ५ दिसम्बर को भोपाल में धर्मपाल शोध-पीठ, मध्य प्रदेश ने अपने तत्वावधान में आमन्त्रित अतिथियों के बीच एक अनौपचारिक बात-चीत का आयोजन किया था। वैश्विक ताकतों की स्व-हितैषी नीति के विशेष परिप्रेक्ष्य में विशेष रूप से भारतीय हितों को संरक्षित करने के लिए विभिन्न व्यक्तियों तथा स्थानीय संगठनों को बौद्धिक रूप से सचेत और सक्रिय करने की नीयत से आयोजित इस बात-चीत में एक विषय यह भी उठा था कि ‘बेहतर नस्ल’ होने का यूरोपीय दावा कितना खोखला है। Continue reading
Nov 30 2015
मतलब की खेती : ‘दाल’ नहीं ‘कमाई’ काटते राज-नेता
हमारा सोच आर्थिक-व्यापारिक अधिक हो गया है। वह नैतिकता-सामाजिकता के निम्नतर स्तर पर पहुँच गया है। कोई अचरज नहीं कि खेसारी-समर्थक ‘वैज्ञानिक’ लॉबी को गलतियाँ करने से कोई गुरेज नहीं है; गुरेज है तो केवल इस पर कि ऐसी गलतियाँ कतई नहीं की जायें जिनसे ‘अधिकतम्’ आर्थिक कमाई मिलने में कोई कसर रह जाती हो। Continue reading
Nov 21 2015
स्वयं को अधिनियम से ऊपर मानने लगा है म० प्र० राज्य सूचना आयोग
न्यायिक इतिहास का यह पहला अवसर था जब न्यायिक निराकरण का संवैधानिक अधिकार प्राप्त कोई पीठ किसी प्रकरण में अपना अन्तिम निराकरण आदेश परित कर देने के बाद, स्वत: प्रेरित और/अथवा स्फूर्त हो कर उसी प्रकरण की सुनवाई को नये सिरे से आरम्भ करने वाली थी। Continue reading
Sep 20 2015
मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयोग : काम के ना धाम के, अढ़ाई मन अनाज के!
लगता है कि म० प्र० राज्य सूचना आयोग में या तो अधिनियम की वैधानिक समझ के लिए आवश्यक रहने वाली आधार-भूत योग्यता के स्थान पर अ-योग्य और अ-पात्रों की भी नियुक्तियाँ हुई हैं या फिर ऐसे सारे व्यक्ति जानते-समझते हुए अधिनियम के ध्येय, मंशा और प्रावधानों की पूर्ति में अड़ंगा डालने की नीयत से कार्य कर रहे हैं। Continue reading
Sep 16 2015
म० प्र० राज्य सूचना आयोग : सवाल वही पुराना
अधिनियम के व्यापक हित में है कि मेरे उठाये आज के सवाल पर आयोग की ओर से ही तथ्यों का कोई त्वरित स्पष्टीकरण आये। आयोग की चुप्पी का अर्थ होगा कि अधिनियम की सार्थकता म० प्र० राज्य सूचना आयोग के विद्यमान ढाँचे में सुरक्षित नहीं है। तब, महामहिम राज्यपाल महोदय पर संवैधानिक कदम उठाने का दबाव डालना पड़ेगा। Continue reading
Sep 12 2015
खेत बदौलत जिये इन्सान, फिर क्यों भूखा मरे किसान?
राजधानी भोपाल की हुजूर तहसील में अधिकांश ग्राम पंचायतों में किसानों की खरीफ फसल प्राकृतिक आपदा का शिकार हो चुकी है। यहाँ ऐसे किसान उँगलियों पर ही गिने जा सकेंगे जिनकी खरीफ फसलें खेतों से खलिहानों तक पहुँचेंगी। और, पहुँचेंगी भी तो इतनी जिसे ठीक-ठाक कहा जा सके। किसानों ने खड़ी फसल के खेतों को भी हाँकना शुरू कर दिया है। Continue reading
Aug 15 2015
सुन-बहरे को सुनाई पड़ जाना!
संकेत हैं कि आयोग की कन-पटी पर ‘जूँ के रेंगने’ जैसा कुछ न कुछ प्रभाव तो पड़ा ही है। यों आयोग ने, केवल दिखावे के लिए ही, एक तरह से मुखौटा लगाया है। लेकिन, किसी सुन-बहरे को इसके लिए विवश कर पाने को कि वह स्वीकारे कि बहरा-पन उसका कोरा दिखावा रहा क्या कोई नगण्य उपलब्धि है? Continue reading